Friday 8 October 2010

आप सभी लोगों को शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर हार्दिक बधाई एवं लाखों मंगलमय शुभकामनाये







जय हिंद

जय माता की
आप सभी लोगों को शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर हार्दिक बधाई एवं लाखों मंगलमय शुभकामनाये
नवरात्रि में आप लोग माता के नौ स्वरूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की विशेष पूजा-अर्चना करें, दुर्गा सप्तशती जी का पाठ करें, माता रानी का सच्चे मन से ध्यान करें,

मार्कण्डेयपुराणके अंतर्गत देवी-माहात्म्य में स्वयं जगदम्बा का आदेश है-शरत्काले महापूजा क्रियतेया चवार्षिकी। तस्यांममैतन्माहात्म्यंश्रुत्वाभक्तिसमन्वित:॥
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तोधनधान्यसुतान्वित:।मनुष्योमत्प्रसादेनभविष्यतिन संशय:॥

शरद् ऋतु के नवरात्रमें जो मेरी वार्षिक महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे माहात्म्य (दुर्गासप्तशती) को भक्तिपूर्वकसुनेगा, वह मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा।

नवरात्रमें दुर्गासप्तशतीको पढने अथवा सुनने से देवी अत्यन्त प्रसन्न होती हैं। सप्तशती का पाठ उसकी मूल भाषा संस्कृत में करने पर ही उसका सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। श्रीदुर्गासप्तशतीको भगवती दुर्गा का ही स्वरूप समझना चाहिए। पाठ करने से पूर्व पुस्तक का इस मंत्र से पंचोपचारपूजन करें-

नमोदेव्यैमहादेव्यैशिवायैसततंनम:। नम: प्रकृत्यैभद्रायैनियता:प्रणता:स्मताम्॥यदि आप दुर्गासप्तशतीका संस्कृत में पाठ करने में असमर्थ हों तो सप्तश्लोकी दुर्गा को पढें। सात श्लोकों वाले इस स्तोत्र में सप्तशती का सार समाहित है। जो इतना भी न कर सके वह केवल दुर्गा नाम को मंत्र मानकर उसका अधिकाधिक जप करें।

नवरात्रके प्रथम दिन कलश (घट) की स्थापना के समय देवी का आवाहन इस प्रकार करें-

आगच्छवरदेदेवि दैत्यदर्प-निषूदिनी।पूजांगृहाणसुमुखिनमस्तेशंकरप्रिये।।

देवी के पूजन के समय यह मंत्र पढें-

जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधानमोऽस्तुते॥

षोडशोपचारविधि से देवी की पूजा करने के उपरान्त यह प्रार्थना करें-

विधेहिदेवि कल्याणंविधेहिपरमांश्रियम्।रूपंदेहिजयंदेहियशोदेहिद्विषोजहि॥

देवि! मेरा कल्याण करो। मुझे श्रेष्ठ सम्पत्ति प्रदान करो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

भक्तजन प्राय: पूरे नवरात्रउपवास रखते हैं। व्रत का विधान गुरु-कुल की परम्परा के अनुसार बन जाता है।

ऋषियों ने सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए सप्तरात्र,पंचरात्र,युग्मरात्रऔर एकरात्रव्रत का विधान भी बनाया है। प्रतिपदा से सप्तमीपर्यन्तउपवास रखने से सप्तरात्र-व्रत का अनुष्ठान होता है। इस व्रत को करने वाले अष्टमी के दिन माता को हलुवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में प्रसाद को ग्रहण करके व्रत का पारण करते हैं।

पंचरात्र-व्रत पंचमी को दिन में केवल एक बार, षष्ठी को केवल रात्रि में एक बार, सप्तमी को बिना मांगे जो कुछ मिल जाय अर्थात अयाचित भोजन करके, अष्टमी को पूरी तरह उपवास रखकर, नवमी में केवल एक बार भोजन करने से पूर्ण होता है।

सप्तमी,अष्टमी और नवमी को केवल एक बार फलाहार करने से त्रिरात्र व्रत होता है। आरंभ और अंत के दिनों में मात्र एक बार आहार लेने से युग्मरात्र व्रत तथा नवरात्रके प्रारंभिक अथवा अंतिम दिन उपवास रखने से एकरात्र-व्रत सम्पन्न होता है।

नवरात्रके नौ दिन साधना करने वाले साधक प्रतिपदा तिथि के दिन शैलपुत्री की, द्वितीया में ब्रह्मचारिणी, तृतीया में चंद्रघण्टा, चतुर्थी में कूष्माण्डा, पंचमी में स्कन्दमाता, षष्ठी में कात्यायनी, सप्तमी में कालरात्रि, अष्टमी में महागौरी तथा नवमी में सिद्धिदात्री की पूजा करें। नवरात्रमें नवदुर्गा की उपासना करने से नवग्रहों का प्रकोप शांत हो जाता है। रावण का वध

करने के लिए शारदीय नवरात्रका व्रत स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी ने किया था।


माता रानी आप लोगो की सभी मनोकामनाये पूरी करे!

इसी के साथ आपका .............................

उमेश मिश्र

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