Friday 31 December 2010

आप को सपरिवार नव-वर्ष 2011 की हार्दिक - शुभकामनाएं ।




प्रिय भाइयों और बहनों,

आप को सपरिवार नव-वर्ष 2011 की हार्दिक - शुभकामनाएं ।

आगामी वर्ष 2011 अपने आगमन् के साथ आपके जीवन में खुशियों की बहार लाएं और सम्‍पूर्ण वर्ष आप व आपके परिवार के लिए मंगलकारी हो यही हमारी हार्दिक इच्छा है!

सदा दूर रहो गम की परछाइयों से, सामना न हो कभी तनहाइयों से,
हर अरमान हर ख्वाब पूरा हो आपका, यही दुआ है दिल की गहराइयों से!
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें!


आशा है आपके लिए नया साल नई उम्मीदें, नई आशाएं, सुनहरे अवसरों और नई खुशियों की बहार लेकर आएगा..........!

अंत में एक बार फिर से आप लोगों को नव वर्ष 2011 के आगमन पर आप सभी को सपरिवार हमारे तरफ से हार्दिक बधाई एवं लाखों मंगलमय-शुभकामनायें. !

आपका

उमेश मिश्र (इ.ओ.)

Wednesday 3 November 2010

दीपावली पर्व एवं छठ पर्व के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाये एवं लाखों बधाइयाँ



दीपावली पर्व एवं छठ पर्व के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाये एवं लाखों बधाइयाँ

दीपावली पर्व एवं छठ पर्व के पावन अवसर पर हमारी तरफ से आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाये एवं लाखों बधाइयाँ

महामाया आप सभी की मनोकामना पूरी करें !

हे लक्ष्मी देवी,
आप कमलमुखी,
कमलपुष्प पर विराजमान,
कमल दल के समान नेत्रों वाली
कमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं।
सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं,
आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं।
आपके चरण सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।
सबके गृह अनल, उस देवी श्री का अब,
वास हो जिसका सदा और जो दे धन प्रचुर,
गो, अश्व, सेवक, सुत सभी,
अश्व जिनके पूर्वतर,
मध्यस्थ रथ,
हस्ति रव से प्रबोधित पथ,
देवी श्री का आगमन हो,
यही प्रार्थना है!

धन - तेरस , दीपावली पर्व पर आयु,आरोग्य,यश, वैभव , गृह,धन-धान्य, धातु आदि की पूजा होती है | द्वितीय दिवस यम् देवता की पूजा,नरक चौदस भी इसी स्वास्थ्य कामना का पर्व है |तृतीय दिवस दीपदान 'तमसो मा ज्योतिर्गमय ' के साथ लक्ष्मी-गणेश पूजन,चतुर्थ -दिवस ,दान,श्रृद्धा,संकल्प का पर्व असुर राज बलि-वामन अवतार प्रसंग व अन्तिम दिन भाई-बहिन के प्रेम का प्रतीक यम्-द्वितीया पर्व सामाजिकता का पर्व है |इस प्रकार सम्पन्नता के साथ स्वास्थ्य, सदाचरण,सम्पूर्ण निर्विघ्नता-कुशलता के अमर संदेश के साथ लक्ष्मी का आगमन हमारी स्वस्थ , अनाचरण रहित कर्म की सांसकृतिक परम्पराओं की अमूल्य निधि है |

लक्ष्मी का आशीर्वाद हो कुबेर तुम पर मेहरबान हो

----------सभी को इस महान पर्व पर हार्दिक शुभ कामनाओं सहित ----

आपका ....

उमेश मिश्र (इ.ओ.)



यहां हम कुछ टिप्स दे रहे हैं, जिनके जरिए दीवाली पर आप थोड़ी से सावधानी बरतकर दुर्घटना होने से रोक सकते हैं।

पटाखे छोड़ने से पहले खुली जगह तलाश लें। आप घर या बाहर जहां भी पटाखे चला रहे हों, ध्यान रखें कि उसके आसपास आसानी से जलने वाली कोई चीज मसलन पेट्रोल, डीजल, केरोसिन या गैस सिलिंडर वगैरह न रखा हो।

पटाखे हमेशा अच्छे ब्रैंड के ही खरीदें। कुछ लोग घर पर अनार और अन्य पटाखे बनाकर मार्किट में बेचते हैं। ऐसे पटाखे अक्सर दुर्घटना का कारण बनते हैं।

वही पटाखे खरीदें, जो बच्चों की उम्र के अनुकूल हों। पटाखे छुड़ाते समय बच्चों के साथ रहें और उन्हें पटाखे चलाने का सुरक्षित तरीका बताएं। छोटे बच्चों को पटाखे न जलाने दें। पांच साल से छोटे बच्चों को तो फुलझड़ी भी न जलाने दें, बल्कि इन्हें खुद जलाकर बच्चों को दिखाएं।

पटाखे जलाने के लिए मोमबत्ती या लंबी लकड़ी का इस्तेमाल करें। माचिस से आग लगाना खतरनाक हो सकता है।

पटाखों को थोड़ी दूरी पर रखकर चलाएं।

एक बार में एक ही पटाखा चलाएं। एक साथ कई पटाखे छोड़ने की स्थिति में आपका ध्यान बंट सकता है और यही लापरवाही हादसे की वजह बन जाती है।

हवा वाले पटाखे मसलन रॉकिट वगैरह छोड़ते समय इस बात का ध्यान रखें कि उसकी दिशा सही हो, अन्यथा यह किसी बड़े हादसे की वजह बन सकते हैं।

अगर आपने कोई पटाखा जलाया है और वह नहीं बजा या फूटा, तो उसे दोबारा जलाने की कोशिश न करें। पटाखा बजने के बाद उसे अपने पास पड़ी पानी की बाल्टी में डाल दें, क्योंकि इनमें आग शेष रहती है, जो कभी भी बड़े हादसे का कारण बन सकती है।

दीवाली की रात को घर की सभी खिड़कियां बंद कर दें, वरना खिड़की से अंदर आकर कोई पटाखा घर में आग लगा सकता है।

Friday 8 October 2010

आप सभी लोगों को शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर हार्दिक बधाई एवं लाखों मंगलमय शुभकामनाये







जय हिंद

जय माता की
आप सभी लोगों को शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर हार्दिक बधाई एवं लाखों मंगलमय शुभकामनाये
नवरात्रि में आप लोग माता के नौ स्वरूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघटा, कुष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री की विशेष पूजा-अर्चना करें, दुर्गा सप्तशती जी का पाठ करें, माता रानी का सच्चे मन से ध्यान करें,

मार्कण्डेयपुराणके अंतर्गत देवी-माहात्म्य में स्वयं जगदम्बा का आदेश है-शरत्काले महापूजा क्रियतेया चवार्षिकी। तस्यांममैतन्माहात्म्यंश्रुत्वाभक्तिसमन्वित:॥
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तोधनधान्यसुतान्वित:।मनुष्योमत्प्रसादेनभविष्यतिन संशय:॥

शरद् ऋतु के नवरात्रमें जो मेरी वार्षिक महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे माहात्म्य (दुर्गासप्तशती) को भक्तिपूर्वकसुनेगा, वह मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन-धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा।

नवरात्रमें दुर्गासप्तशतीको पढने अथवा सुनने से देवी अत्यन्त प्रसन्न होती हैं। सप्तशती का पाठ उसकी मूल भाषा संस्कृत में करने पर ही उसका सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। श्रीदुर्गासप्तशतीको भगवती दुर्गा का ही स्वरूप समझना चाहिए। पाठ करने से पूर्व पुस्तक का इस मंत्र से पंचोपचारपूजन करें-

नमोदेव्यैमहादेव्यैशिवायैसततंनम:। नम: प्रकृत्यैभद्रायैनियता:प्रणता:स्मताम्॥यदि आप दुर्गासप्तशतीका संस्कृत में पाठ करने में असमर्थ हों तो सप्तश्लोकी दुर्गा को पढें। सात श्लोकों वाले इस स्तोत्र में सप्तशती का सार समाहित है। जो इतना भी न कर सके वह केवल दुर्गा नाम को मंत्र मानकर उसका अधिकाधिक जप करें।

नवरात्रके प्रथम दिन कलश (घट) की स्थापना के समय देवी का आवाहन इस प्रकार करें-

आगच्छवरदेदेवि दैत्यदर्प-निषूदिनी।पूजांगृहाणसुमुखिनमस्तेशंकरप्रिये।।

देवी के पूजन के समय यह मंत्र पढें-

जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधानमोऽस्तुते॥

षोडशोपचारविधि से देवी की पूजा करने के उपरान्त यह प्रार्थना करें-

विधेहिदेवि कल्याणंविधेहिपरमांश्रियम्।रूपंदेहिजयंदेहियशोदेहिद्विषोजहि॥

देवि! मेरा कल्याण करो। मुझे श्रेष्ठ सम्पत्ति प्रदान करो। मुझे रूप दो, जय दो, यश दो और मेरे काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

भक्तजन प्राय: पूरे नवरात्रउपवास रखते हैं। व्रत का विधान गुरु-कुल की परम्परा के अनुसार बन जाता है।

ऋषियों ने सम्पूर्ण नवरात्रव्रत के पालन में असमर्थ लोगों के लिए सप्तरात्र,पंचरात्र,युग्मरात्रऔर एकरात्रव्रत का विधान भी बनाया है। प्रतिपदा से सप्तमीपर्यन्तउपवास रखने से सप्तरात्र-व्रत का अनुष्ठान होता है। इस व्रत को करने वाले अष्टमी के दिन माता को हलुवा और चने का भोग लगाकर कुंवारी कन्याओं को खिलाते हैं तथा अन्त में प्रसाद को ग्रहण करके व्रत का पारण करते हैं।

पंचरात्र-व्रत पंचमी को दिन में केवल एक बार, षष्ठी को केवल रात्रि में एक बार, सप्तमी को बिना मांगे जो कुछ मिल जाय अर्थात अयाचित भोजन करके, अष्टमी को पूरी तरह उपवास रखकर, नवमी में केवल एक बार भोजन करने से पूर्ण होता है।

सप्तमी,अष्टमी और नवमी को केवल एक बार फलाहार करने से त्रिरात्र व्रत होता है। आरंभ और अंत के दिनों में मात्र एक बार आहार लेने से युग्मरात्र व्रत तथा नवरात्रके प्रारंभिक अथवा अंतिम दिन उपवास रखने से एकरात्र-व्रत सम्पन्न होता है।

नवरात्रके नौ दिन साधना करने वाले साधक प्रतिपदा तिथि के दिन शैलपुत्री की, द्वितीया में ब्रह्मचारिणी, तृतीया में चंद्रघण्टा, चतुर्थी में कूष्माण्डा, पंचमी में स्कन्दमाता, षष्ठी में कात्यायनी, सप्तमी में कालरात्रि, अष्टमी में महागौरी तथा नवमी में सिद्धिदात्री की पूजा करें। नवरात्रमें नवदुर्गा की उपासना करने से नवग्रहों का प्रकोप शांत हो जाता है। रावण का वध

करने के लिए शारदीय नवरात्रका व्रत स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी ने किया था।


माता रानी आप लोगो की सभी मनोकामनाये पूरी करे!

इसी के साथ आपका .............................

उमेश मिश्र

Thursday 15 April 2010

मैं आप सभी लोगो से अधिक से अधिक पौधे लगाने की अपील करता हूँ !



मैं आप सभी लोगो से अधिक से अधिक पौधे लगाने की अपील करता हूँ !

पर्यावरण सुरक्षा के लिए आप लोग कम से कम 100 पौधे जरूर लगायें ! अपने जन्म दिन के अवसर पर , अवकाश पर , किसी भी त्योहार पर , किसी भी यादगार अवसर पर, नव-वर्ष के आगमन पर, किसी सुनहरे समय पर, वर्षगांठ के अवसर पर, शादी - विवाह के अवसर पर, आप लोगों से विनती है कम से कम एक पौधा जरूर लगायें ! पौधे लगाना हमारा एक नैतिक कर्तव्य है हमे इस कर्तव्य को निभाना चाहिए इससे विमुख नही होना चाहिए! अगर हमें आरोग्य रहना है,तो अधिकाधिक वृक्ष लगाने होंगे। आज के आधुनिक युग में जब प्रदूषित जल,वायु और वातावरण का हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर पड रहा है,तो हमें सावधान होकर इस घातक वातावरण से बचने के लिए पेड लगाने होंगे,तभी हम पूर्ण स्वस्थ रह सकेंगे।
मानव का वृक्षों और पौधों के साथ सदियों से अटूट रिश्ता रहा है। वृक्ष, मानव जीवन का आधार है। केवल बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने में ही नहीं , बल्कि जलवायु एवं वातावरण के संतुलन में भी वृक्षों का योगदान सर्वोपरि है। वृक्षों से हमें फल , फूल , औषधि और लकड़ी आदि तो मिलता ही है, साथ ही घर और अपने आसपास पेड़-पौधे लगाने से मनुष्य का धर्म भी बढता है।

शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल , एक नीम , दस इमली , तीन कैथ , तीन बेल , तीन आंवला और पांच आम के वृक्ष लगाता है , वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता।

कुछ लोग वृक्षों का महत्त्व नहीं समझते । लकड़ी का लोभ और खेती के लिए अधिक जगह मिलने के लालच में पेड़ों को काटते चले जाते हैं, उन्हें यह ज्ञान नहीं है की इन तुच्छ लाभों की तुलना में वृक्ष विनाश से होने वाली हानि कितनी अधिक भयंकर है । यदि वृक्ष सम्पदा विनाश का वर्तमान क्रम चलता रहा तो उसके भयानक परिणाम भुगतने पड़ेंगे ।

ग्रंथ में कहते हैं-
`मूलत: ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिण:
अग्रत: शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नम:।´
अर्थात वृक्ष के मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है।

भगवान शिव जैसे योगी भी वट वृक्ष के नीचे ही समाधि लगाकर तप साधना करते थे-
.तहँ पुनि संभु समुझिपन आसन
बैठे वटतर, करि कमलासन।´
(रामचरित मानस- बालकांड)
कई सगुण साधकों, ऋषियों, यहां तक कि देवताओं ने भी वट वृक्ष में भगवान विष्णु की उपस्थिति के दर्शन किए हैं-
स्कन्द पुराण में वर्णित है कि अश्वत्थ (पीपल) के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में श्रीहरि और फलों में सभी देवताओं के साथ अच्युत सदैव निवास करते हैं।पीपल भगवान विष्णु का जीवन्त और पूर्णत:मूर्तिमान स्वरूप है।

अश्वत्थ सुमहाभागसुभग प्रियदर्शन।
इष्टकामांश्चमेदेहिशत्रुभ्यस्तुपराभवम्॥

आयु: प्रजांधनंधान्यंसौभाग्यंसर्व संपदं।
देहिदेवि महावृक्षत्वामहंशरणंगत:॥

`सृष्टिकर्ता यदा ब्रह्मा न लभे सृष्टि साधनम
तदाक्षयवटं, चैनं पूज्या मासकामदम।´

-अर्थात सृष्टि रचना के प्रारंभिक दौर में जब ब्रह्माजी को यथेष्ट परिमाण में उचित सामग्री उपलब्ध नहीं हुई तो उन्होंने विष्णु उपस्थिति से मंडित वट वृक्ष का पूजन-आराधन किया और आदि परमेश्वर से उचित सहायता प्राप्त कर अपना मनोरथ पूरा किया। `मनोरथ पूर्ण हो´ जैसे सिद्ध आशीर्वाद देने की क्षमता का प्रतिफल ही था यह, जिसने साध्वी नारियों में इस वृक्ष के प्रति आकर्षण और विश्वास को जागृत किया। इस प्रकार वट वृक्ष पूजने का यह विष्णु प्रयोजन एक प्रथा के रूप में चल पड़ा। कुलवधुएं ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन `वट-सावित्री´ का व्रत रखती हैं, तन्मय एकाग्रता के साथ वट के चारों ओर धागा लपेटकर अपने पतिव्रत संकल्प को मजबूत करती हैं। सावित्री-सत्यवान की प्रेरक कथा सुनती हैं तथा वैसा ही सद्गृहस्थ जीवन उन्हें भी उपलब्ध हो, यह मंगलकामना करती हैं।

जब हमारे पूर्वजो ने, ऋषि मुनियों ने,और पुराणों ने वृक्षो की महिमा का गुणगान किया है इसकी महिमा को समझा है तो हमारा भी यही फ़र्ज़ बनता है की हम लोग भी उन्ही के बताये हुए मार्ग पर चले और प्रकृति के संतुलन को बनाये रखने और वातावरण को स्वच्छ रखने के लिए हम सभी लोग अधिक से अधिक पौधे लगायें!
आप कोई भी पौधा लगा सकते हैं जैसे की आवला, नीम, बरगद, बबूल, गुलर, सफेदा, आम, पीपल, इमली,बेल,कटहल,जामुन, या कोई भी पौधा, हर पौधे की अपनी महानता है कोई फल वाला है, कोई इमारती, तो कोई औषधि-युक्त है वृक्षों की महानता का वर्णन नहीं किया जा सकता है!
हमें हर हाल में अधिक से अधिक पौधे लगाने होंगे और अन्य लोगो को भी अधिक से अधिक पौधे लगाने के लिए प्रेरित करना होगा यही हमारा कर्त्तव्य है !
मैं आशा करता हूँ कि हम सब लोग मिलकर इस धरती को स्वर्ग बनाएँगे ,पर्यावरण सुरक्षा के इस महत्वपूर्ण दायित्व को निभाएंगे और हम लोग अधिक से अधिक पौधे लगाएगे!

इसी आशा और विश्वाश के साथ आपका ..................

उमेश मिश्रा