Saturday 13 July 2013

PALHNA DEVI DHAM (AZAMGARH - U.P.)


आजमगढ़: जिले में कई ऐसे देवी मंदिर हैं जहां भक्तों की आशा की ज्योति बारहों महीने जलती रहती है।
शहर के मुख्य चौक पर स्थित दक्षिण मुखी देवी के दरबार में हर दिन हजारों लोग मत्था टेकते हैं। पुजारी परिवार में परिस्थितियां चाहे जो भी हों लेकिन मां का श्रृंगार कभी रुका नहीं। लोगों में विश्वास है कि दिल से जो भी मां का ध्यान करता है उसका बिगड़ा हुआ काम जरूर पूरा होता है। इस स्थान की महत्ता इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि कहा जाता है कि दक्षिण एशिया में दो ही दक्षिणमुखी देवी दुर्गा का मन्दिर है। यहां के बारे में बहुत कुछ तो कोई नहीं बता पाता लेकिन पुजारी परिवार के लोग बताते हैं कि मंदिर की स्थापना कई सौ साल पहले हुई। उस समय यहां से होकर तमसा नदी बहती थी और प्रतिमा नदी किनारे मिट्टी में मिली थी। जिस स्थिति में प्रतिमा मिली उसी स्थिति में स्थापित कर मंदिर का निर्माण करा दिया गया। नगर के लोग मां विन्ध्वासिनी के दर्शन के लिए जाने से पूर्व मां दक्षिण मुखी का दर्शन जरूर करते है।
मां पाल्हमेश्वरी धाम में उमड़ता है मेला
जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दक्षिण स्थित मां पाल्हमेश्वरी धाम का वर्णन पदम पुराण के द्वितीय खण्ड के सातवें अध्याय की बारहवीं चौपाई में भी है। हर नवरात्र में यहां मांगलिक कार्य संपन्न कराए जाते हैं।  माँ पल्हमेश्वरी देवी  सिद्ध पीठ भी है यहाँ जो माँगो वो मिलता है यह एक सच्चा दरबार है माँ पल्हमेश्वरी देवी की पूजा से सभी इच्छा पूरी हो जाती हैं। यहाँ स्थित पोखरे में स्नान करने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं।
जहानागंज क्षेत्र के टाड़ी गांव स्थित मां परमज्योति धाम के बारे में मान्यता है कि यहीं पर मां ने भैंसासुर राक्षस का वध किया और उसके खून की धारा जहां तक गई वहां तक भैंसही नदी अस्तित्व में है।
..और यहां भी दर्शन
निजामाबाद के शीतला धाम पर भी नवरात्र व सावन के महीने में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

 इन्टरनेट के माध्यम से  संग्रहित 

तनोट की आवड़ माता ....सैनिकों की अटूट आस्था की प्रतीक


तनोट की आवड़ माता 

सैनिकों की अटूट आस्था की प्रतीक

एक बार फिर 4 दिसम्बर 1971 की रात को पंजाब रेजीमेंट की एक कंपनी और सीसुब की एक कंपनी ने माँ के आशीर्वाद से लोंगेवाला में विश्व की महानतम लड़ाइयों में से एक में पाकिस्तान की पूरी टैंक रेजीमेंट को धूल चटा दी थी। लोंगेवाला को पाकिस्तान टैंकों का कब्रिस्तान बना दिया था।

1965 के युद्ध के बाद सीमा सुरक्षा बल ने यहाँ अपनी चौकी स्थापित कर इस मंदिर की पूजा-अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन और संचालन सीसुब की एक ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है। मंदिर में एक छोटा संग्रहालय भी है जहाँ पाकिस्तान सेना द्वारा मंदिर परिसर में गिराए गए वे बम रखे हैं जो नहीं फटे थे।
सीसुब पुराने मंदिर के स्थान पर अब एक भव्य मंदिर निर्माण करा रही है।

लोंगेवाला विजय के बाद माता तनोट राय के परिसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण किया, जहाँ हर वर्ष 16 दिसम्बर को महान सैनिकों की याद में उत्सव मनाया जाता है। 

हर वर्ष आश्विन और चै‍त्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। अपनी दिनोंदिन बढ़ती प्रसिद्धि के कारण तनोट एक पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध होता जा रहा है। 


इतिहास: मंदिर के वर्तमान पुजारी सीसुब में हेड काँस्टेबल कमलेश्वर मिश्रा ने मंदिर के इतिहास के बारे में बताया कि बहुत पहले मामडि़या नाम के एक चारण थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा की। एक बार माता ने स्वप्न में आकर उनकी इच्छा पूछी तो चारण ने कहा कि आप मेरे यहाँ जन्म लें। 

माता कि कृपा से चारण के यहाँ 7 पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत 808 में चारण के यहाँ जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों से युक्त थी। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा की। 
काँस्टेबल कालिकांत सिन्हा जो तनोट चौकी पर पिछले चार साल से पदस्थ हैं कहते हैं कि माता बहुत शक्तिशाली है और मेरी हर मनोकामना पूर्ण करती है। हमारे सिर पर हमेशा माता की कृपा बनी रहती है। दुश्मन हमारा बाल भी बाँका नहीं कर सकता है।
माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया। राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़ माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया। विक्रम संवत 828 ईस्वी में आवड़ माता ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहाँ अपनी स्थापना की। 

विक्रम संवत 999 में सातों बहनों ने तणुराव के पौत्र सिद्ध देवराज, भक्तों, ब्राह्मणों, चारणों, राजपूतों और माड़ प्रदेश के अन्य लोगों को बुलाकर कहा कि आप सभी लोग सुख शांति से आनंदपूर्वक अपना जीवन बिता रहे हैं अत: हमारे अवतार लेने का उद्देश्य पूर्ण हुआ। इतना कहकर सभी बहनों ने पश्चिम में हिंगलाज माता की ओर देखते हुए अदृश्य हो गईं। पहले माता की पूजा साकल दीपी  ब्राह्मण  ( SHAKALDWIPIY BRAHMAN ) किया करते थे। 1965 से माता की पूजा सीसुब द्वारा नियुक्त पुजारी करता है।



 इन्टरनेट के माध्यम से  संग्रहित